Kundeshwar Dham in Madhya Pradesh by Manjusha Radhe - Part 2
जनश्रुतियो अनुसार,,बाणासुर खेरई के उस ओर जामनेर नदी के किनारे बानपुर में रहता था।उसकी पुत्री का नाम ऊषा था।
एक दिन गुप्तचरों ने बाणासुर को बताया राजकुमारी ऊषा हर रोज़ रात्रि के समय नदी के पास स्थित कुंड में जाकर अदृश्य हो जाती है और सुबह वहा से आती हैं।
तब अगले रात्रि होते ही बाणासुर राजकुमारी ऊषा का पीछा करते हुए कुंड के समीप पहुंचे तो उन्होंने देखा ऊषा के जाते ही कुंड का पानी दो भागो में विभाजित हो गया और बीच के खाली रास्ते ऊषा वहां प्रवेश कर गई ,उसके जाते ही कुंड पूर्ववत हो गया ,लाख कोशिश के बावजूद भी बाणासुर उसमे प्रवेश नहींi कर सका। सुबह ऊषा के कुंड से बाहर आते ही वार्तालाप से उसे ज्ञात हुआ कि कुंड के भीतर उनके इष्ट शिव साक्षात निवास करते है,उनके पूजन अर्चन हेतु हर रोज ऊषा कुंड में जाती थी ।
ये जानकर बाणासुर ने एक पैर पर खड़े होकर वही शिव की कठोर तपस्या की।उसके कठोर तप से प्रसन्न हो शिव उसे दर्शन देने हेतु शिवलिंग रूप में प्रकट हुए और इस तरह वहा मंदिर का निमार्ण हुआ ।आज भी टीकमगढ़ के निवासी जो बचपन से बुढ़ापे तक इसके सानिध्य में रहे शिवलिंग के बड़ने के गवाह हैं तथा ये साक्षात प्रमाण है शिव के होने का ।भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां भक्त और भगवान आज भी प्रेम और श्रद्धा की डोर से जुड़े है। जहा लाखो हजारों लोग यहां अपनी मन्नत मांगने और पूरी करने आते है और वहीं आश्चर्य भी है कि इतने प्राचीन और अद्भुत शिवलिंग के बारे देश की आधे से ज्यादा जनता अनभिज्ञ है ।
कुंडेश्वर धाम के बारे में एक कथा और कही जाती है । चौदहवी शताब्दी में उस टीले पर सात आठ परिवारों को टोला बस गया था। वही अपने निवास् स्थान पर धन्ती नाम की महिला धान कूट रही थी ,मूसल के प्रहार से ओखली के चावल रक्त रंजित हो गए और उसे ये अहसास हुआ कि मूसल जैसे किसी सर पर लगा हो।
तब धन्ती ने ओखली पर कूँड़ा (मिट्टी की कुण्डी) ढक दिया और इस रहस्य को स्पष्ट करने हेतु टीले से नीचे आई । जहां श्रीमद्भागवत कथा हो रही थी। काकरवाड़ी निवासी प्रसिद्ध सोमया जी लछमन भट्ट तैलंग के पुत्रपुष्टि मार्गीय, शुद्धाद्वैत मत प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की वर्षगाँठ श्रोतागण मना रहे थे।उन्होंने धन्ती के अनुरोध पर वहाँ जाकर देखा। ओखली का नजारा देख वे भी आश्चर्य चकित हो गए । महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने वहाँ खुदाई कराई तो वँहा शिवलिंग मिला जिसकी गहराई कोई पता नहीं कर पाया। तब उन्होंने ब्राह्मणों द्वारा विधि पूर्वक वहाँ शिवलिंग की स्थापना कर वहाँ मंदिर का निर्माण कराया।ओखली को कूँडा ढका गया था जिस कारण कुंडेश्वर धाम का एक नाम श्री कूँड़ादेव भी है।
धीरे धीरे प्रसिद्धि के कारण वहाँ मठ का निर्माण हुआ जो आज भी मंदिर के उत्थान हेतु कार्यरत हैं पर आज भी कई लोग इस प्राचीन शिवलिंग से अनभिज्ञ है। सरकार को चाहिए इस प्राचीन और दुर्लभ धरोहर के लिए कार्य करे जिससे भारतवासी ऐसी प्राचीन धोराहर के बारे में जान सके।
राधे मंजूषा
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